कोवलम बीच:सुनहरी रेत और लहरों का शोर
पंकज घिल्डियाल
नारियल के पेड़ों से घिरे रेस्तरां, झींगा मछली-केकड़े आदि सी फूड आइटम खरीदते पर्यटक और सुनहरी रेत- केरल के कोवलम बीच पर कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है।
उस दिन से पहले समुद्र की ऊंची-ऊंची उठती लहरों को मैंने सिनेमाई पर्दे पर ही देखा था। पलकों ने कुछ पल झपकने से इनकार कर दिया। कई फुट ऊंची लहरों ने मुझे डराया जरूर, लेकिन उन्हें यूं देखना भी मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं था। त्रिवेंद्रम यानी तिरुवनंतपुरम के पुरसुकूं समुद्री किनारों के बारे में मैंने जितना सुना था, वहां का असल नजारा उससे कहीं अधिक मनमोहक था। पर्यटनप्रेमी सच ही कहते हैं कि त्रिवेंद्रम के ‘बीच’ यानी समुद्री किनारे ही उसकी पहचान हैं। तिरुवनंतपुरम के बारे में कहा जाता है कि आप यहां आए और आपने कोवलम बीच नहीं देखा तो क्या देखा!
दरअसल हमारी मित्र मंडली करीब 15 दिन के दक्षिण भारत टूर पर निकली हुई थी। ट्रेन ने हमें सुबह करीब 5.30 बजे तिरुवनंतपुरम स्टेशन पर उतारा। दिल्ली से दो दिन की लम्बी यात्रा इतना उबा चुकी थी कि जी चाह रहा था कि उतर कर दौड़ते चले जाएं। हमारे कार्यक्रम में रुकना तय नहीं था। लिहाजा हमने अपना सामान स्टेशन के क्लॉक रूम में ही जमा करवा दिया। पता नहीं क्यों, हम सब जल्दी से जल्दी समुद्र का दीदार करना चाहते थे। इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि यात्रा के दौरान हम इस बारे में लोगों से काफी सुन चुके थे। हम वहां की स्थानीय भाषा से अनजान थे। यही वह वक्त था, जब हमें समझ आया कि अपनी बात कहने में बॉडी लैंग्वेज की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। ट्रेन में ही एक शादीशुदा जोड़ा हमें कोवलम जाने की सलाह दे चुका था।
हम शहर के बाजार घूमते-घूमते अब थक चुके थे। हमने करीब 11 बजे ऑटो लिया और निकल पड़े कोवलम बीच की ओर। ऑटो वाले ने हमें एक सुनसान से समुद्री किनारे पर छोड़ा। समुद्र को पहली बार सामने देख दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। जेब से वॉलेट निकाला और ऑटो वाले को जल्दी से विदा कर दिया। दरअसल ऑटो चालक भांप चुका था कि हम बीच पर जाने के लिए कुछ ज्यादा ही पागल हो रहे हैं, इसलिए उसने चालाकी दिखाते हुए हमें कोवलम से पहले ही एक जगह छोड़ दिया था, जो दरअसल एक डेंजर जोन था। वहां समुद्री तूफान कुछ ज्यादा ही तीव्र गति से आ रहे थे। मैंने समुद्री कीड़े-मकौड़ों को इससे पहले इतनी तादाद में कभी नहीं देखा था। मेरे लिए यह ऐसा ही नजारा था, जैसा डिस्कवरी चैनल पर कोई ट्रैवलर उन्हें पास से दिखा रहा हो। बीच को देखने के उत्साह में हम बेवकूफ बन गए।
हमारी नजरें सड़क किनारे खड़े एक शरीफ से व्यक्ति पर पड़ीं। ऐसा लग रहा था मानों हम जैसे भटके लोगों को राहत पहुंचाना ही उसका मकसद है। उसका नारियल पानी पीकर हमारी जान में कुछ जान आई। इसके बाद हम सही रास्ता पूछ कर कोवलम बीच पहुंचे। वक्त यही कोई अक्तूबर के पहले सप्ताह का था, लेकिन उस वक्त वहां का मौसम दिल्ली की मई-जून की गर्मी को भी मात दे रहा था। शहर से करीब 15 कि.मी. की दूरी तय करने के बाद हम कोवलम बीच पहुंचे। हम ढलान वाली सड़क से नीचे उतरे। सामने नीले व सलेटी रंग के अरब सागर का आकर्षक नजारा था। सामने दो ऊंची पहाड़ियां थीं, जो समुद्र के आगे नतमस्तक थीं। तट पर नारियल के पेड़ों से घिरे कई रेस्तरां थे। वहीं हवा के झोंकों के साथ सफे द चांदी-सी बिछी रेत पेड़ों से टकरा कर हम तक पहुंच रही थी। पक्षियों की चहचहाहट के बीच समुद्र का कभी न खत्म होने वाला दूसरा छोर भी था। हमने घंटों रेत पर बैठ कर ऊंची-ऊंची लहरों को निहारा।
लाइटहाउस बीच कोवलम बीच का मुख्य बीच है। यहां पर विदेशी सैलानियों की संख्या सबसे अधिक होती है। लाइट हाउस को करीब से देखना हो तो उसके लिए 2 से 4 बजे के बीच का समय आपको मिलेगा। हमने उधर की ओर रुख किया तो पता चला कि यह एक पहाड़ी पर बने प्राइवेट होटल का प्राइवेट बीच है और एक सीमा से आगे वहां आम सैलानी नहीं जा सकते।
मैंने उन जहाजों को भी देखा, जो दूर टिमटिमाते नजर आ रहे थे। सबसे मजेदार था वहां के पानी का रंग। समुद्र का पानी पल-पल अपना रंग बदल रहा था। एक और दिलचस्प बात यह है कि जो सूर्यास्त हमें तीन दिन कन्याकुमारी में रहने के बाद भी देखना नसीब नहीं हुआ था, वो कोवलम में बहुत ही अच्छे तरीके से देखने को मिल गया। यह खूबसूरत नजारा मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया। जैसे-जैसे सूरज समुद्र में डूबता जा रहा था, वैसे-वैसे हम पर रोमांच भी हावी हो रहा था। यहां बीच पर कुछ नावें भी थीं। कुछ मोटर बोट भी थीं, जिनमें इंजन लगा हुआ था। वे समुद्र में पर्यटकों को काफी दूर तक घुमाने के लिए ले जा रही थीं। वहीं कुछ मछुआरे मछली पकड़ रहे थे। और हम पलों को अपने मन में सहेज कर रख रहे थे।
सचमुच वहां समय का पता नहीं चला। कोवलम बीच दिन ढलते-ढलते किसी अच्छे-खासे बाजार में तब्दील होने लगा। स्विम सूट, तौलिया व खाने-पीने का सामान लोग यहीं से खरीदते दिखे। झींगा मछली, केकड़े आदि सी फूड आइटम्स को खरीदने और खाने की हिम्मत हम नहीं जुटा पाए। यहां जुटी भीड़ को देख एक बार मन तो हुआ, लेकिन किसी चैनल में जिंदा कीड़े-मकौड़े मंुह में डालता वह व्यक्ति याद आ गया तो हमने वह विचार त्याग दिया। बीच की साफ और सुंदर गीली रेत पर घर बनाना और समुद्री लहरों का उस घर को तोड़ देना फिल्मों में तो कई बार देखा था, खुद से रेत से घर बनाना सचमुच नया अनुभव था। ऐसे कई अनुभव यादों की पोटली में समेट कर हम वापसी के लिए निकल पड़े।
कोवलम: एक नजर
कोवलम, केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के पास समुद्र के तट पर स्थित एक जाना-माना शहर है। यह जगह तिरुवनंतपुरम के मुख्य शहरी इलाके से ज्यादा दूर नहीं है। अगर आप चाहें तो यहां मोपेड और स्कूटर किराए पर लेकर स्थानीय इलाकों में घूम सकते हैं।
कैसे पहुंचें: ट्रेन व फ्लाइट से कोवलम आने के लिए आपको पहले त्रिवेंद्रम आना पड़ेगा। इसके बाद आपको कोवलम के लिए बस या टैक्सी मिल जाएगी।
कब जा सकते हैं: आप नवंबर से मार्च के बीच यहां घूम सकते हैं।
क्या है खास: यहां का स्पा काफी मशहूर है। इस लेख की तस्वीरें गूगल से साभार
नारियल के पेड़ों से घिरे रेस्तरां, झींगा मछली-केकड़े आदि सी फूड आइटम खरीदते पर्यटक और सुनहरी रेत- केरल के कोवलम बीच पर कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है।
उस दिन से पहले समुद्र की ऊंची-ऊंची उठती लहरों को मैंने सिनेमाई पर्दे पर ही देखा था। पलकों ने कुछ पल झपकने से इनकार कर दिया। कई फुट ऊंची लहरों ने मुझे डराया जरूर, लेकिन उन्हें यूं देखना भी मेरे लिए किसी रोमांच से कम नहीं था। त्रिवेंद्रम यानी तिरुवनंतपुरम के पुरसुकूं समुद्री किनारों के बारे में मैंने जितना सुना था, वहां का असल नजारा उससे कहीं अधिक मनमोहक था। पर्यटनप्रेमी सच ही कहते हैं कि त्रिवेंद्रम के ‘बीच’ यानी समुद्री किनारे ही उसकी पहचान हैं। तिरुवनंतपुरम के बारे में कहा जाता है कि आप यहां आए और आपने कोवलम बीच नहीं देखा तो क्या देखा!
दरअसल हमारी मित्र मंडली करीब 15 दिन के दक्षिण भारत टूर पर निकली हुई थी। ट्रेन ने हमें सुबह करीब 5.30 बजे तिरुवनंतपुरम स्टेशन पर उतारा। दिल्ली से दो दिन की लम्बी यात्रा इतना उबा चुकी थी कि जी चाह रहा था कि उतर कर दौड़ते चले जाएं। हमारे कार्यक्रम में रुकना तय नहीं था। लिहाजा हमने अपना सामान स्टेशन के क्लॉक रूम में ही जमा करवा दिया। पता नहीं क्यों, हम सब जल्दी से जल्दी समुद्र का दीदार करना चाहते थे। इसकी बड़ी वजह यह भी थी कि यात्रा के दौरान हम इस बारे में लोगों से काफी सुन चुके थे। हम वहां की स्थानीय भाषा से अनजान थे। यही वह वक्त था, जब हमें समझ आया कि अपनी बात कहने में बॉडी लैंग्वेज की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है। ट्रेन में ही एक शादीशुदा जोड़ा हमें कोवलम जाने की सलाह दे चुका था।
हम शहर के बाजार घूमते-घूमते अब थक चुके थे। हमने करीब 11 बजे ऑटो लिया और निकल पड़े कोवलम बीच की ओर। ऑटो वाले ने हमें एक सुनसान से समुद्री किनारे पर छोड़ा। समुद्र को पहली बार सामने देख दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। जेब से वॉलेट निकाला और ऑटो वाले को जल्दी से विदा कर दिया। दरअसल ऑटो चालक भांप चुका था कि हम बीच पर जाने के लिए कुछ ज्यादा ही पागल हो रहे हैं, इसलिए उसने चालाकी दिखाते हुए हमें कोवलम से पहले ही एक जगह छोड़ दिया था, जो दरअसल एक डेंजर जोन था। वहां समुद्री तूफान कुछ ज्यादा ही तीव्र गति से आ रहे थे। मैंने समुद्री कीड़े-मकौड़ों को इससे पहले इतनी तादाद में कभी नहीं देखा था। मेरे लिए यह ऐसा ही नजारा था, जैसा डिस्कवरी चैनल पर कोई ट्रैवलर उन्हें पास से दिखा रहा हो। बीच को देखने के उत्साह में हम बेवकूफ बन गए।
हमारी नजरें सड़क किनारे खड़े एक शरीफ से व्यक्ति पर पड़ीं। ऐसा लग रहा था मानों हम जैसे भटके लोगों को राहत पहुंचाना ही उसका मकसद है। उसका नारियल पानी पीकर हमारी जान में कुछ जान आई। इसके बाद हम सही रास्ता पूछ कर कोवलम बीच पहुंचे। वक्त यही कोई अक्तूबर के पहले सप्ताह का था, लेकिन उस वक्त वहां का मौसम दिल्ली की मई-जून की गर्मी को भी मात दे रहा था। शहर से करीब 15 कि.मी. की दूरी तय करने के बाद हम कोवलम बीच पहुंचे। हम ढलान वाली सड़क से नीचे उतरे। सामने नीले व सलेटी रंग के अरब सागर का आकर्षक नजारा था। सामने दो ऊंची पहाड़ियां थीं, जो समुद्र के आगे नतमस्तक थीं। तट पर नारियल के पेड़ों से घिरे कई रेस्तरां थे। वहीं हवा के झोंकों के साथ सफे द चांदी-सी बिछी रेत पेड़ों से टकरा कर हम तक पहुंच रही थी। पक्षियों की चहचहाहट के बीच समुद्र का कभी न खत्म होने वाला दूसरा छोर भी था। हमने घंटों रेत पर बैठ कर ऊंची-ऊंची लहरों को निहारा।
लाइटहाउस बीच कोवलम बीच का मुख्य बीच है। यहां पर विदेशी सैलानियों की संख्या सबसे अधिक होती है। लाइट हाउस को करीब से देखना हो तो उसके लिए 2 से 4 बजे के बीच का समय आपको मिलेगा। हमने उधर की ओर रुख किया तो पता चला कि यह एक पहाड़ी पर बने प्राइवेट होटल का प्राइवेट बीच है और एक सीमा से आगे वहां आम सैलानी नहीं जा सकते।
मैंने उन जहाजों को भी देखा, जो दूर टिमटिमाते नजर आ रहे थे। सबसे मजेदार था वहां के पानी का रंग। समुद्र का पानी पल-पल अपना रंग बदल रहा था। एक और दिलचस्प बात यह है कि जो सूर्यास्त हमें तीन दिन कन्याकुमारी में रहने के बाद भी देखना नसीब नहीं हुआ था, वो कोवलम में बहुत ही अच्छे तरीके से देखने को मिल गया। यह खूबसूरत नजारा मैंने अपने कैमरे में कैद कर लिया। जैसे-जैसे सूरज समुद्र में डूबता जा रहा था, वैसे-वैसे हम पर रोमांच भी हावी हो रहा था। यहां बीच पर कुछ नावें भी थीं। कुछ मोटर बोट भी थीं, जिनमें इंजन लगा हुआ था। वे समुद्र में पर्यटकों को काफी दूर तक घुमाने के लिए ले जा रही थीं। वहीं कुछ मछुआरे मछली पकड़ रहे थे। और हम पलों को अपने मन में सहेज कर रख रहे थे।
सचमुच वहां समय का पता नहीं चला। कोवलम बीच दिन ढलते-ढलते किसी अच्छे-खासे बाजार में तब्दील होने लगा। स्विम सूट, तौलिया व खाने-पीने का सामान लोग यहीं से खरीदते दिखे। झींगा मछली, केकड़े आदि सी फूड आइटम्स को खरीदने और खाने की हिम्मत हम नहीं जुटा पाए। यहां जुटी भीड़ को देख एक बार मन तो हुआ, लेकिन किसी चैनल में जिंदा कीड़े-मकौड़े मंुह में डालता वह व्यक्ति याद आ गया तो हमने वह विचार त्याग दिया। बीच की साफ और सुंदर गीली रेत पर घर बनाना और समुद्री लहरों का उस घर को तोड़ देना फिल्मों में तो कई बार देखा था, खुद से रेत से घर बनाना सचमुच नया अनुभव था। ऐसे कई अनुभव यादों की पोटली में समेट कर हम वापसी के लिए निकल पड़े।
कोवलम: एक नजर
कोवलम, केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के पास समुद्र के तट पर स्थित एक जाना-माना शहर है। यह जगह तिरुवनंतपुरम के मुख्य शहरी इलाके से ज्यादा दूर नहीं है। अगर आप चाहें तो यहां मोपेड और स्कूटर किराए पर लेकर स्थानीय इलाकों में घूम सकते हैं।
कैसे पहुंचें: ट्रेन व फ्लाइट से कोवलम आने के लिए आपको पहले त्रिवेंद्रम आना पड़ेगा। इसके बाद आपको कोवलम के लिए बस या टैक्सी मिल जाएगी।
कब जा सकते हैं: आप नवंबर से मार्च के बीच यहां घूम सकते हैं।
क्या है खास: यहां का स्पा काफी मशहूर है। इस लेख की तस्वीरें गूगल से साभार




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